नया घर बनाते समय कौन-कौन से वास्तु नियम सबसे ज़रूरी होते हैं?

घर का वास्तु दिखाने वाली चित्रकारी जिसमें मुख्य द्वार, दिशाएँ और ऊर्जा का संतुलित प्रवाह दर्शाया गया है।

नया घर बनवाना केवल ईंटें लगाने का काम नहीं होता, बल्कि आने वाले वर्षों की शांति, सुख और तरक्की की नींव रखना होता है। बहुत बार घर बाहरी रूप से सुंदर होता है, लेकिन उसमें रहते ही बेचैनी, तनाव, कामों में अड़चनें या पैसों की रुकावट महसूस होने लगती है। इसका कारण अधिकतर गलत दिशाएँ और गलत स्थान पर बने कमरे होते हैं।
वास्तु कोई कठिन विषय नहीं है—बस थोड़ा-सा ध्यान रखकर घर को ऐसा बनाया जा सकता है कि उसमें खुशियाँ और सकारात्मक ऊर्जा स्वाभाविक रूप से बहती रहे।

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मुख्य द्वार

घर का मुख्य द्वार ही वह स्थान है जहाँ से पूरी ऊर्जा भीतर प्रवेश करती है। यदि द्वार उत्तर, पूर्व या उत्तर-पूर्व दिशा में हो, तो घर में स्वच्छ, हल्की और शुभ ऊर्जा आती है। इससे मन शांत रहता है और घर में तरक्की होती है।
यदि द्वार दक्षिण या दक्षिण-पश्चिम दिशा में हो, तो घर में भारीपन, तनाव और अनचाही रुकावटें बढ़ सकती हैं।
मुख्य द्वार के सामने गंदगी, कूड़ा या अवरोध न हो। द्वार चमकदार और साफ होना चाहिए।

रसोई

रसोई घर की सेहत, परिवार की एकता और मनोदशा को प्रभावित करती है। रसोई की सबसे शुभ दिशा दक्षिण-पूर्व मानी जाती है, क्योंकि यह अग्नि तत्व का स्थान है। दूसरा विकल्प उत्तर-पश्चिम हो सकता है।
रसोई उत्तर-पूर्व दिशा में नहीं बनानी चाहिए—यह शांत बुद्धि और मानसिक स्वच्छता की दिशा है।
चूल्हा दक्षिण-पूर्व दिशा में और पानी का स्थान उससे दूर होना चाहिए। खाना बनाते समय मुख पूर्व की ओर हो तो शुभ फल मिलता है। रसोई में हल्के रंग हों, जैसे क्रीम, हल्का पीला या हल्का लाल।

मुख्य शयनकक्ष

मुख्य शयनकक्ष दक्षिण-पश्चिम दिशा में होना चाहिए। यह दिशा स्थिरता, दृढ़ता और संतुलन देती है।
सोते समय सिर दक्षिण या पूर्व की ओर हो—नींद गहरी आती है और मन शांत रहता है।
बिस्तर के सामने दर्पण न हो और बिस्तर के नीचे सामान न रखें, इससे मानसिक बोझ और तनाव बढ़ता है।

बच्चों का कमरा

बच्चों की पढ़ाई, एकाग्रता और व्यक्तित्व पर कमरे की दिशा का बड़ा असर होता है।
पूर्व दिशा पढ़ाई, ज्ञान और एकाग्रता बढ़ाती है।
उत्तर दिशा बुद्धि, नई सोच और रचनात्मकता देती है।
कमरे में हल्के रंग हों और अध्ययन की मेज़ ऐसी जगह हो जहाँ से दरवाज़ा दिखाई दे। पीठ दरवाजे की ओर होने से ध्यान भटक जाता है।

पूजा स्थल

पूजा स्थल घर का सबसे पवित्र भाग होता है। इसे उत्तर-पूर्व में रखना सबसे शुभ माना जाता है। यहाँ की ऊर्जा अत्यंत हल्की और शुद्ध होती है।
देव प्रतिमाएँ पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके रखें।
पूजा स्थल में टूटी प्रतिमाएँ, पुराने फूल या फालतू सामान न रखें।
इसे स्नानघर, रसोई या शयनकक्ष के बहुत निकट न बनाएं।

बैठक कक्ष

बैठक कक्ष वह स्थान है जहाँ घर का वातावरण सबसे अधिक महसूस होता है।
यह कक्ष उत्तर, पूर्व या उत्तर-पूर्व दिशा में बनाया जाए तो घर का माहौल उजला, हल्का और प्रसन्न रहता है।
भारी सामान दक्षिण-पश्चिम की ओर रखें और हल्के सामान उत्तर या पूर्व की ओर।
कमरे में खुली हवा और प्राकृतिक प्रकाश अवश्य आए।
परिवार की मुस्कुराती तस्वीरें या प्रकृति की तस्वीरें यहाँ लगाना अत्यंत शुभ होता है।

स्नानघर और शौचालय

स्नानघर और शौचालय पश्चिम, उत्तर-पश्चिम, दक्षिण या दक्षिण-पूर्व दिशा में बनाए जा सकते हैं।
उत्तर-पूर्व दिशा में स्नानघर नहीं होना चाहिए—यह सबसे पवित्र दिशा है और यहाँ अशुद्धता घर की ऊर्जा को प्रभावित करती है।
स्नानघर साफ रहे, दरवाज़ा बंद रहे और दुर्गंध न हो—ये छोटी बातें बड़े प्रभाव डालती हैं।

भंडार कक्ष

भारी और कम उपयोग होने वाला सामान दक्षिण-पश्चिम दिशा में रखा जाए तो अच्छा होता है।
उत्तर-पूर्व दिशा भंडारण के लिए बिल्कुल उपयुक्त नहीं है, इसे हमेशा हल्का और स्वच्छ रखना चाहिए।

सीढ़ियाँ

सीढ़ियाँ दक्षिण, पश्चिम या दक्षिण-पश्चिम दिशा में बनाई जानी चाहिए।
घर के मध्य भाग में या उत्तर-पूर्व में सीढ़ियाँ बनाना ऊर्जा को अवरुद्ध करता है और घर में तनाव तथा रुकावटें पैदा करता है।

शीतक (फ्रिज)

शीतक को दक्षिण-पूर्व या उत्तर-पश्चिम दिशा में रखना उत्तम माना जाता है।
उत्तर-पूर्व दिशा में रखने से घर की हल्की ऊर्जा भारी हो जाती है और कार्यों में विलंब होने लगता है।
शीतक के ऊपर सामान न रखें।

पानी की टंकियाँ

ऊपरी टंकी दक्षिण-पश्चिम दिशा में होनी चाहिए—यह घर को स्थिरता देती है।
भूमिगत टंकी उत्तर-पूर्व दिशा में हो तो घर में मानसिक शांति और सकारात्मकता बढ़ती है।

घर का सामान कहाँ रखें?

बैठने की बड़ी मूर्तियाँ या भारी सोफ़ा दक्षिण-पश्चिम में रखें।
चित्रपट (टीवी) उत्तर या पूर्व दिशा की दीवार पर लगाया जा सकता है।
भोजन मेज पश्चिम या दक्षिण दिशा में बेहतर रहती है।
अध्ययन की मेज़ उत्तर या पूर्व दिशा में रखी जानी चाहिए।

घर का मध्य भाग (ब्रह्मस्थान)

घर का मध्य भाग हमेशा खाली और साफ होना चाहिए। यहाँ भारी सामान, अवरोध या गंदगी घर की ऊर्जा को रोक देती है और परिवार में बेचैनी तथा तनाव बढ़ाती है।

नया घर बनाते समय पाँच मुख्य नियम

मुख्य द्वार उत्तर या पूर्व दिशा में हो
रसोई दक्षिण-पूर्व दिशा में बने
मुख्य शयनकक्ष दक्षिण-पश्चिम दिशा में हो
उत्तर-पूर्व हमेशा हल्का और स्वच्छ रखा जाए
घर में जल का प्रवाह उत्तर या पूर्व की ओर हो

निष्कर्ष

वास्तु कोई डराने वाला नियम नहीं है, बल्कि घर की ऊर्जा को संतुलित और प्रसन्न बनाने का सहज तरीका है। जब घर की दिशाएँ, कमरे और सामान सही स्थान पर होते हैं, तो घर केवल रहने की जगह नहीं रहता—वह आनंद, स्वास्थ्य, तरक्की और शांति देने वाला स्थान बन जाता है।

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