विवाह में ग्रहों का असर
विवाह में ग्रहों का असर – ज्योतिषीय गणना विवाह मे ग्रहों का असर जानने से पहले यह समझना आवश्यक है की विवाह शब्द का वास्तविक अर्थ क्या होता है | असल में विवाह या शादी शब्द सुनने में मामूली लगता है | लेकिन यह बस दो लोगो का साथ नही होता है, यह तो दो आत्माओं का मिलन होता है | विवाह बहुत पवित्र रस्म होती है और साथ ही हमारे शास्त्रों में विवाह को ‘संस्कार’ कहा गया है | क्योंकि यह एक ऐसा बंधन है जो जन्मों तक साथ निभाने का वचन देता है | इसके अलावा यह सिर्फ सामाजिक व्यवस्था नहीं है, बल्कि आत्मिक, मानसिक और भावनात्मक स्तर पर जुड़ाव है। जब दो लोग विवाह के बंधन मे बंधते है तो वो दोनों सिर्फ रिश्तेदार नहीं बनते, बल्कि एक-दूसरे के कर्मों के भागीदार भी बनते है | विवाह मे ग्रहों के असर से फरक पड़ता है इसलिए विवाह मे ग्रहों का असर जानना अति आवश्यक होता है कुंडली मे विवाह से जुड़ी भूमिका :- जानिए विवाह मे ग्रहों का असर साथ ही, विवाह हर व्यक्ति के जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ होता है | कुंडली से इसका पूर्व अनुमान लगाया जा सकता है| इसी तरह, व्यक्ति की जन्म कुंडली में 7वाँ भाव (House of Marriage) विवाह का प्रमुख कारक होता है | इसके स्वामी ग्रह की स्थिति, उस पर शुभ या अशुभ ग्रहों की दृष्टि, और शुक्र व गुरु जैसे ग्रहों की भूमिका विवाह की दिशा और दशा तय करती है। अगर कुंडली में शुभ योग बने हों – जैसे गुरु या शुक्र की अच्छी स्थिति, सप्तम भाव में शुभ ग्रह हो, तो व्यक्ति को सुखद वैवाहिक जीवन प्राप्त होता है। इसके विपरीत यदि कुंडली में मंगल दोष, राहू-केतु या शनि जैसे ग्रहों का प्रभाव होता है | इसी वजह से विवाह मे देरी या कठिनाइयाँ आ सकती है | वहीं यदि मंगल दोष, राहु-केतु या शनि जैसे ग्रहों का प्रभाव हो, तो विवाह में विलंब या तनाव आ सकता है। इसलिए कुंडली के विवाह योगों को समझना, जीवन साथी चुनने से पहले ज़रूरी होता है। अगर आप विवाह योग के बारे मे जानना चाहते हो तो Astrologer Rajat Kumar से संपर्क कर सकते हो | शादी में में देरी और बाधाएँ: ज्योतिषीय कारण और विवाह मे ग्रहों का असर कई बार ऐसा होता है की बार-बार रिश्ते टूटते हैं, या उम्र निकल जाने के बाद भी विवाह नहीं हो पाता | तो व्यक्ति खुद पर शक करता है | लेकिन वह यह नहीं समझ पाता की इसकी वजह हमारी कुंडली मे छिपी होती है | सप्तम भाव में अशुभ ग्रहों की स्थिति (जैसे शनि, राहु, केतु), मंगल दोष, या शुक्र का नीच होना विवाह में देरी और बाधा पैदा कर सकता है। उदाहरण के लिए गुरु या सप्तम भाव का स्वामी कमजोर हो, या दशा-अंतर्दशा विवाह योग के अनुकूल न हो, तो विवाह में अनचाहा विलंब होता है | इसके अलावा , नवांश कुंडली में भी यदि संबंधों को दर्शाने वाले ग्रह पीड़ित हों, तो यह मानसिक उलझन और गलत निर्णयों की ओर ले जाता है। इसलिए, अगर विवाह मे बार-बार रुकावट आ रही हो, तो कुंडली की गहराई से जांच और उचित उपाय करवाना चाहिए | पति-पत्नी में मनमुटाव के ज्योतिषीय कारण शादी के बाद हालांकि सब कुछ ठीक हो तो लेकिन कई बार पति और पत्नी के बीच अनबन, दूरी या मनमुटाव बन जाता है | इसके पीछे सिर्फ व्यावहारिक कारण नहीं, बल्कि ज्योतिषीय कारण भी हो सकते है | अगर सप्तम भाव में अशुभ ग्रहों का प्रभाव हो – जैसे शनि, राहु या केतु – तो यह रिश्तों में गलतफहमी, दूरियां और कठोरता पैदा कर सकते हैं। शुक्र (पति के लिए पत्नी का कारक) और गुरु (पत्नी के लिए पति का कारक) की नीच स्थिति या शत्रु ग्रहों से दृष्टि रिश्ते को प्रभावित करती है। इसी कारण से समझदारी से किया गया ज्योतिषीय विश्लेषण न सिर्फ कारण बताता है, बल्कि रिश्तों को जोड़ने के उपाय भी देता है। अगर आप भी ज्योतिष से मिलकर अपने बारे मे पूछना चाहते हो या विवाह मे ग्रहों का असर जानना चाहते हो, तो Astrologer Rajat kumar से संपर्क करें | दाम्पत्य जीवन में तीसरे व्यक्ति का दखल (Extra-Marital Issues) जब भी विवाह के बीच कोई तीसरा आ जाए, तो रिश्ता अंदर से टूटने लगता है | ऐसे मामलों में, ज्योतिषी (Astrologer) महत्वपूर्ण संकेत देता है | यह ग्रह भटकाव और मोह-माया से जुड़े होते है | यदि नवांश कुंडली में शुक्र, चंद्र या सप्तमेश पीड़ित हो, तो व्यक्ति भावनात्मक रूप से असंतुष्ट रहता है और बाहर सुकून ढूंढ़ने की प्रवृत्ति बन जाती है।नतीजतन ऐसे योग में विवाह के बाहर संबंध बनने की संभावना अधिक होती है, और रिश्ते में अविश्वास उत्पन्न होता है।इसलिए समय रहते समाधान करना आवश्यक है, वरना यह केवल शादी नहीं, आत्मा को भी तोड़ देता है। संतान संबंधी समस्याएँ और ग्रहों की भूमिका संतान सुख जीवन के सभी सुखों मे सबसे श्रेष्ठ सुख होता है, खासकर संतान सुख जीवन को पूर्णता देता है, लेकिन जब यह सुख नहीं मिल पाता तो मानसिक, सामाजिक और वैवाहिक दबाव बढ़ जाता है | ज्योतिष में पंचम भाव संतान से जुड़ा होता है। यदि विशेष रूप से पंचम भाव में राहु, केतु, शनि या मंगल जैसे ग्रह स्थित हों, या पंचमेश कमजोर हो, तो संतान से जुड़ी बाधाएं आ सकती हैं।उदाहरण के लिए, संतान में देरी, गर्भपात या संतान न होना – ये सभी संकेत कुंडली में स्पष्ट दिखाई देते हैं। इस स्थिति में, ज्योतिषीय उपायों से संतान प्राप्ति की संभावना को बढ़ाया जा सकता है — जैसे संतान गोपाल मंत्र, विशेष व्रत और ग्रह शांति। तलाक, अलगाव और कोर्ट केस – चेतावनी संकेत अक्सर कई बार जब पति और पत्नी के बीच मे नहीं बनती है और जब विवाह का रिश्ता कोर्ट तक पहुँच जाय, तो यह सिर्फ कानूनी नहीं रह जाता है, बल्कि आत्मिक संघर्ष बन जाता है | खासकर ज्योतिष में सप्तम भाव में क्रूर ग्रहों (जैसे मंगल, शनि, राहु) का प्रभाव पति-पत्नी के बीच हिंसा, मतभेद और दूरी ला सकता है। इसके अतिरिक्त, अगर शुक्र और चंद्र कोमल ग्रह पीड़ित हों, तो भावनात्मक जुड़ाव कमजोर हो जाता है और झगड़े बद जाते